For the Gonds, Forest is Heaven on Earth

For the Gonds, Forest is Heaven on Earth

  • Economic Justice
  • by कोया पुनेम शेर सिंह आचला
  • 19 Jul, 2019

जंगल ही स्वर्ग का पैगाम है अथवा पृथ्वी में ही स्वर्ग साउदाहरण : अति आदिम युगीन पाषाण काल के तीनो युगों में गोंड जनजातियों के उन पूर्वजों ने इसी पृथ्वी में उगे पेड़,पौधों,जंगल,पहाड़ों को स्वर्ग का पैगाम मानते हुए उनके वैचारिक सदभावना और प्रकृति पर्यायवरण जल, जंगल, जमीन को ही स्वर्ग की संज्ञा से संबोधित किया जो अब तक पारम्पारिक आस्था में गोंडी धरम (कोया पुनेम) के अंतर्गत जल जंगल जमीन की पूजा करते हुए एक स्वर्ग की उपाधि एवं मान्यता पर आश्रित है|)

पेड़-पौधे जंगलों पहाड़ों की पूजा को ही (पेन पुरुड) अर्थात प्रकृति और जीव जगत की जीवन आधार मानते हुए वर्तमान गोंड समाज के अनेक रीति-रिवाज आधारित है| यह एक कहावत ही नही हकीकत है,अर्थात जंगलों को बचाना हमारा परम धर्म है और कर्तव्य को आत्मसात किये हुए हैं, क्योंकि उन्ही जंगलों के बीच के रैन बसेरा हीस्वर्गमें निवास के सामान आज भी है |

उदाहरणार्थ : जंगलों में बसने वाले उन आदि मानव के वंशज आज भी सरलतम सादगी पूर्ण स्वास्थय वर्धक सुख मय जिदगी को अब तक सिर्फ वन पर्वतों के तलहटी में स्थित पोखर,झरनों,नदी,नालों,किनारे बसे उन गावों में ही है जो शहरी करण के सीमेंट-कांक्रीट रूपी जंगलों से कोसों दूर है| वहां का रैन बसेरा करने वाले ही प्रकृति से प्राण वायु की स्वास लेकर अमन चैन की जिन्दगी बिता रहे हैं| सुख शान्ति का अनुभव कर रहे हैं,वही तो स्वर्ग के निवासी हैं| उस स्वर्ग में दूर-दूर तक जंगल पर सचमुच कोई चौकीदार नही | 

आज के परिस्थिति में जंगलों पेड़ों की कटाई और पर्वत,पहाड़ों में स्थित खनिज संपदा का बेतरतीब दोहन किया जा रहा है, जो उस जंगल रूपी स्वर्ग को नष्ट करते हुए भौतिक संसाधन के प्रकृति का दोहन किया जा रहा है| जिससे अनेक प्रजातियो के जीवन विलुप्त होने के कगार में हैं, अर्थात स्वर्ग से नरक की ओर बढ़ रहे सम्पूर्ण दुनिया...इस पर चिंतन मनन करते हुए समस्त मानव समुदाय की जंगल ही स्वर्ग है की मान्यता के अनुसार प्रक्रति और पर्यायवरण अर्थात जल,जंगल,जमीन को बचाने और भावी पीढ़ियों के जीवन हित में हमें एकजुट होने की प्रेरणा गोंडी धर्म के अनुसार स्वर्ग में दूर-दूर तक जंगल है और चौकीदार नही...इस उदाहरण से सबक लेना चाहिए |

लेखक एवं प्रस्तुत कर्ता: कोया पुनेम शेर सिंह आचला, आदिम संस्कृति एवं गोंडी भाषाचार्य

स्थान :सीजीनेट कार्यालय रायपुर 
दिनाँक: 20 मई 2019.

Economic Justice

We work towards fair sharing of natural resources and ensuring better livelihoods for forest-dependent communities

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